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चोरी

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चोरी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चोर+ई]

१. छिपकर किसी दूसरे की वस्तु लेने का काम । चुराने की क्रिया ।

२. चुराने का भाव । यौ॰—चोरीचारी या चोरी छिनाला = दूषित निंदित कर्म । मुहा॰—चोरी चोरी = छिपकर । गुप्त रूप से । चोरी लगना = चोरी के दोष का आरोप होना । चोरी लगाना = चोरी करने का दोष आरोपित करना । चोरी का अभियोग लगाना ।

चोरी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चौरा]

१. छोटा चबूतरा । बेदी । उ॰— रची चौरी आप ब्रह्मा चरित कंभा लगाइ के ।—सूर (शब्द॰)

२. किसी देवी, देवता सती आदि के लिये बनाया हुआ छोटा चौरा या चबूतरा जिसके ऊपर एक छोटा सा स्तुप जैसा बना होता है । इस स्तूप में मूर्ति या प्रतिक की पूजा की जाती है । कहीं कहीं स्तूप में एक ओर तिकोना या गोल गड़्ढा होता है जिसमें दिया रखते हैं । दे॰ 'चौरा'—२ । †

३. मूल स्थान । आदि स्थान ।

४. अकेली दूब का या जमीन पर पसरनेवाली किसी एक घास का घना और छोटा विस्तार । घास या दूब का थक्का । जैसे,—दूब की चारी ।